जब तक नई व्यवस्था नहीं होगी, जजों की नियुक्तियों पर सवाल उठता रहेगा : किरन रिजिजू

नई दिल्ली। उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को लेकर उठते रहे सवालों और सुप्रीम कोर्ट की ओर से जताई गई तीखी प्रतिक्रिया के बीच गुरुवार को फिर से सदन में असंतुष्टि जाहिर हुई।
केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने अदालतों में मुकदमो के बढ़ते ढेर को निपटाने के प्रयास और न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित सवाल का जवाब देते हुए राज्यसभा में कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर जबतक हम नयी व्यवस्था खड़ी नहीं करेंगे, तबतक न्यायाधीशों की रिक्तियों का मुद्दा और नियुक्तियों का सवाल उठता ही रहेगा।
कानून मंत्री इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने एनजेएसी के लागू न हो पाने की ओर इशारा करते हुए आगे कहा मुझे यह कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन यह बात सही है कि इस देश की या इस सदन की जो भावना रखी गई थी, उसके मुताबिक हमारे पास व्यवस्था नहीं बनी है।
मालूम हो कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था बदलने के लिए सरकार एनजेएसी कानून लाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कानून रद कर दिया था जिससे कि 1993 से लागू नियुक्ति की कोलेजिमय व्यवस्था फिर बहाल हो गई।
न्यायाधीशों की नियुक्ति की कोलेजियम की सिफारिशों को मंजूर करने में सरकार की ओर से की जाने वाली देरी और सिफारिशें दबा कर बैठ जाने का मुद्दा उठाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोलेजियम व्यवस्था कानून है और उसका पालन करना होगा।
कोर्ट ने टिप्पणियों में यह भी कहा था कि सरकार अगर कानून लाना चाहती है तो उसे किसने रोका है लेकिन अभी यही कानून है और इसका पालन करना होगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पैरोकारी कर रहे अटार्नी जनरल से कहा था कि वह सरकार को इस कानूनी स्थिति को समझाएं।
गुरुवार को कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने राज्यसभा में कानून मंत्री से सवाल पूछा कि इस समय देश में 4.90 करोड़ केस लंबित हैं। मुवक्किल भटक रहे हैं परेशान हैं उनके केस निस्तारित नहीं हो रहे। आखिर इसके लिए किसे जिम्मेदार मानें। न्यायपालिका कहती है कि सरकार नियुक्तियों को मंजूर नहीं करती।
तमाम पद खाली पड़े हैं और सरकार कहती है कि जो कोलेजियम सिस्टम है वह इस तरह का होना चाहिए जैसा कि एनजेएसी में प्रस्ताव था जिसमें सब लोगों के साथ मिल जुल कर जजों का चयन हो। शुक्ला ने कहा कि उनका सवाल है कि सरकार के पास इस समस्या के निराकरण की क्या योजना है।
कानून मंत्री ने जवाब में 2015 में संसद से न्यायाधीशों की नियुक्ति के आयोग (एनजेएसी) के पारित होने का जिक्र किया और यह भी बताया कि दो तिहाई राज्यों ने भी उसे मंजूरी दे दी थी। कानून मंत्री ने कहा इस समय रिक्तियों को भरने के लिए सरकार के पास बहुत सीमित अधिकार हैं।
कोलेजियम जो नाम तय करके भेजती है, उसके अलावा सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है कि जजों की नियुक्ति के लिए सरकार नये नाम ढू्ढे। उन्होंने कहा कि सरकार कई बार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश से कह चुकी है कि जजों की रिक्तियों को भरने के लिए तुरंत नाम भेजे जाएं। नाम भेजते वक्त ऐसे नाम भेजे जाएं जिनमें वह क्वालिटी हो और देश की विविधिता को देखते हुए , सभी जातियों, सभी धर्मों और खास तौर पर महिलाओं के नाम भी उसमें शामिल होने चाहिए।
कानून मंत्री ने कहा लेकिन मुझे लगता है कहीं न कहीं हमारे सदन की जो भावना है अथवा देश की जनता की जो भावना है, उसके मुताबिक हम काम नहीं कर पा रहे हैं। रिजिजू ने कहा कि वह यहां से बहुत ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि कभी कभी यह लग सकता है कि कोर्ट को जो अधिकार दिये गए है उनमें सरकार हस्तक्षेप कर रही है।
कानून मंत्री ने कहा लेकिन अगर संविधान के प्राविधान देखेंगे तो नियुक्ति की प्रक्रिया है, उस पर सरकार का अधिकार था और इसको लेकर कोर्ट के साथ सरकार का कंसल्टेशन चलता था। 1993 के बाद वह सब बदल गया।
अगर हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की रिक्यिों को देखा जाए तो 9 दिसंबर तक हाई कोर्ट में 777 न्यायाधीश काम कर रहे है जबकि मंजूर कुल पद 1,108 हैं हाई कोर्ट में कुल 331 रिक्तियां हैं जो कि 30 फीसद हैं। ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के 24 पद मंजूर हैं जबकि कुल 28 न्यायाधीश अभी काम कर रहे हैं। छह पद खाली हैं।
वर्तमान में, सरकार के पास रिक्तियों (अदालतों में) को भरने के लिए सीमित शक्तियां हैं, “उन्होंने कहा और कहा कि केंद्र कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों के अलावा अन्य नामों की तलाश नहीं कर सकता है। रिजिजू ने सदन को यह भी बताया कि न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के लिए जल्द से जल्द नाम भेजने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों को मौखिक और लिखित दोनों तरह से अनुरोध किया गया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को पुनर्जीवित करेगी, रिजिजू ने कहा कि कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, प्रमुख न्यायविदों, अधिवक्ताओं, वकीलों और राजनीतिक दलों के नेताओं की राय है कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा अधिनियम को रद्द कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट सही नहीं था।