Jayant Chaudhary: जयंत के भाजपा में जाने से मुस्लिम मतदाताओं में बढ़ा असमंजस , जानिये क्या बन रहे है नये राजनीतिक समीकरण

 
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रालोद का भाजपा के साथ समझौता हो जाता है, तो मुसलमान मतदाताओं का बड़ा हिस्सा जयंत चौधरी का साथ छोड़ सकता है।

इसके बाद वे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के संभावित गठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं जिसका लाभ सपा-कांग्रेस को हो सकता है।

Jayant Chaudhary: जयंत चौधरी की भाजपा खेमे में जाने की चर्चा जोरों पर है। दोनों दलों के नेताओं के बीच सीटों पर तालमेल के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर चर्चा अंतिम दौर में है। जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह के जन्मदिन 12 फरवरी के आसपास दोनों दलों के बीच समझौते की घोषणा हो सकती है। इससे दोनों दलों को लाभ होने की उम्मीद है।

इससे भाजपा अपने कमजोर पश्चिमी यूपी के किले को मजबूत करने में सफल रहेगी, तो जयंत चौधरी को भी लोकसभा में खाता खोलने का अवसर मिल सकता है। लेकिन इस समझौते पर पश्चिमी यूपी के मुसलमानों की भी नजर है।

यदि भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच कोई समझौता होता है, तो इससे उन्हें अपने लिए नया विकल्प तलाशने की आवश्यकता पड़ सकती है। इससे पश्चिमी यूपी के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है। 

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दरअसल, मुसलमान और जाट मतदाता राष्ट्रीय लोकदल के परंपरागत समर्थक रहे हैं। कुछ अवसरों को छोड़ दें, तो चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजित सिंह से लेकर जयंत चौधरी तक इन वर्गों का लगभग एकमुश्त समर्थन रालोद को मिलता रहा है।

इन्हीं की बदौलत अजित सिंह केंद्र और उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी धमक बनाए रखने में सफल रहे थे। इस समय इन्हीं वर्गों के समर्थन से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल लोकसभा चुनावों में सफलता की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन आरएलडी के भाजपा के साथ जाने से इस क्षेत्र में नए राजनीतिक समीकरण पैदा हो सकते हैं।

माना जा रहा है कि यदि रालोद का भाजपा के साथ समझौता हो जाता है, तो मुसलमान मतदाताओं का बड़ा हिस्सा जयंत चौधरी का साथ छोड़ सकता है। इसके बाद वे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के संभावित गठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं जिसका लाभ सपा-कांग्रेस को हो सकता है।

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पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन से इंडिया गठबंधन को लाभ मिल सकता है। जिस तरह कांग्रेस हाल के दौर में मजबूत हुई है, और मुसलमानों में उसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बढ़ी है, माना जा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा उसके खेमे में जा सकता है।

कांग्रेस कुछ बड़े मुस्लिम चेहरों को अपने साथ लाकर भी इस समीकरण को और ज्यादा मजबूती देने में जुटी हुई है। यदि सपा के साथ उसका सीटों का समझौता हो गया, तो इससे मुस्लिम मतदाताओं को एक स्पष्ट च्वाइस मिल जाएगी, जो इस गठबंधन को पश्चिमी यूपी में बड़ा लाभ पहुंचा सकता है।

हालांकि, बसपा ठीक इसी वोट बैंक पर अपना दावा करती है। दलित उसके परंपरागत वोटर रहे हैं, तो मुसलमान मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा उसे वोट करता रहा है। मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाकर भी बसपा इस क्षेत्र में बड़े उलटफेर करती रही है।

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इस लोकसभा चुनाव में भी वह इन्हीं वर्गों पर दांव लगाकर इंडिया गठबंधन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। वहीं, भाजपा को भी ठीक इन्हीं समीकरणों में अपना लाभ दिख रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पश्चिमी यूपी का जाट मतदाता परंपरागत राजनीति को छोड़ अब भाजपा का समर्थन कर रहा है।

युवा जाट मतदाता राष्ट्रीय और हिंदुत्व की पहचान को ज्यादा महत्त्व दे रहा है। यही कारण है कि जयंत चौधरी के अलग होने के बाद भी भाजपा जाट बहुल सीटों पर बड़ी जीत हासिल करने में सफल रही थी। लेकिन इस बार यदि वे भाजपा के साथ आ जाते हैं, तो यह पूरी ताकत एकजुट हो जाएगी और इससे भाजपा उन सीटों पर भी जीत हासिल कर सकेगी, जिन्हें वह 2019 में नहीं जीत पाई थी।

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भाजपा नेता का अनुमान है कि राम मंदिर के प्रभाव, पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की उभरती छवि को ध्यान में रखते हुए जाट मतदाताओं का बड़ा हिस्सा उसके साथ रहेगा और वह यूपी की सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहेगी।