Karnataka Election News: भगवा दल की हार का कौन जिम्मेदार, बीजेपी के किले में कांग्रेस का अधिकार, जीत के ये हैं 5 शिल्पकार
![National News: Who is responsible for the defeat of the saffron party, the right of Congress in the fort of BJP, these are the 5 architects of victory](https://www.bmbreakingnews.com/static/c1e/client/99149/uploaded/0100add00be528ab20af354de9fffd04.webp?width=963&height=520&resizemode=4)
Karnataka Election News: कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस का हर मुद्दा चला और बीजेपी की एक भी न चली। जय बजरंग बली लेकिन शायद लहर उल्टी चली। कर्नाटक की जनता यूसीसी और मुस्लिम आरक्षण की बजाए कांग्रेस की पांच गारंटियों को ज्यादा पसंद किया। प्रधानमंत्री मोदी की रैली और रोड शो में भीड़ तो जुटी लेकिन वो वोटों में नहीं बदल पाई। बोम्मई सरकार के खिलाफ कांग्रेस का चालीस प्रतिशत कमीशन वाला नैरेटिव काम कर गया। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और प्रियंका गांधी के कैंपेन को बड़ा श्रेय दिया जा रहा है। वहीं राहुल गांधी ने कहा है कि ये नफरत की हार है और मोहब्बत की जीत है। कांग्रेस के लिए कर्नाटक की जीत किसी ऑक्सजीन से कम नहीं है। इस साल के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। फिर सीधे 2024 के आम चुनाव।
इस बार के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तगड़ी बाजी मार ली। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मिली ये जीत कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। दक्षिण में कर्नाटक ही एक ऐसा राज्य था जहां बीजेपी की सरकार थी। पार्टी को सत्ता दिलाने के पीछे इन पांच लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है। इन लोगों ने ही जी तोड़ मेहनत और कुशल रणनीति से बीजेपी को मात दी।
कांग्रेस इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, इसलिए यहां इस बार पांच रणनीतिकारों की तैनाती की। इन्होंने बखूबी अपना काम किया और पार्टी को शानदार जीत दिलाई। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के पीछे प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का बड़ा हाथ है। प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पार्टी में चल रही आतंरिक गुटबाजी को काबू किया। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पार्टी में उनकी भूमिका सबसे बड़े संकट मोचक की है। शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। ऐसे में वोक्कालिगा वोटरों को पार्टी के पाले में लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का भी पार्टी की जीत में बड़ा योगदान रहा। मैसूर जिले के सिद्धारमन हुंड्डी के रहने वाले सिद्धारमैया ने साल 2013 से 2018 तक सीएम का पद भी संभाला था। 76 साल के सिद्धारमैया वरुण सीट से चुनाव लड़ने के बावजूद पूरे राज्य में चुनाव प्रचार किया। सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं और वो राज्य में प्रमुख ओबीसी चेहरा है। पार्टी का वो लोकप्रिय चेहरा है और 2023 में कांग्रेस को जब जीत मिली है तो उनका नाम सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहा है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कर्नाटक गृह राज्य है। उनकी गिनती राज्य के सबसे बड़े दलित चेहरे के रूप में होती है। खरगे ने पूरे राज्य में पार्टी की ओर से ताबड़तोड़ प्रचार किया और रणनीति बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी को कम करने में भी पूरी ताकत झोक दी। राज्य में दलितों की आबादी 20 फीसदी है। दलित वोटर्स को कांग्रेस की तरफ शिफ्ट करने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
साल 2020 में कांग्रेस ने रणदीप सुरजेवाला को कर्नाटक का प्रभारी महासचिव बनाया था। जिस समय वो प्रभारी बने उससे एक साल पहले ही कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस सरकार गिर गई थी। ऐसे में पार्टी में आतंरिक गुटबाजी चरम पर थी। सुरजेवाला ने चुनाव में पार्टी के दो बड़े गुटों सिद्घारमैया और शिवकुमार गुट को एक साथ लेकर आए। टिकट वितरण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कर्नाटक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम जी परमेश्वर की कांग्रेस को जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। पार्टी का मेनिफेस्टो उन्हीं के नेतृत्व में तैयार हुआ। बजरंग दल को बैन करने का वादा कांग्रेस ने मैनिफेस्टो में किया था। जिसने चुनाव में खासी सुर्खियां बटोरी। जिससे मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में हुआ। परमेश्वर साल 1989 में पहली बार कांग्रेस विधायक बने थे।
एक असंभावित मुख्यमंत्री 63 वर्षीय बसवराज बोम्मई ने अच्छी शुरुआत की थी। अपने कार्यकाल के दूसरे महीने में 2 सितंबर, 2021 को जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बोम्मई के सत्ता में आने के बाद कर्नाटक की अपनी पहली यात्रा पर थे तो उन्होंने 2023 चुनाव के फेस के लिए उन्हीं पर भरोसा जताा। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बोम्मई ने छोटी-छोटी चीजों पर फोकस किया है।
उन्होंने वीवीआईपी संस्कृति को नहीं अपनाया। दिल्ली में कर्नाटक को करीब से देखने वालों का मानना है कि बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाने के बाद भाजपा ने खुद को मजबूत किया है। लेकिन उनका हनीमून पीरियड बमुश्किल छह महीने तक चला।
जिसमें बोम्मई के खिलाफ पार्टी के भीतर, केंद्रीय नेतृत्व, राज्य सरकार और बड़े पैमाने पर लंबित और नई परियोजनाओं पर भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर अनिर्णय से निपटने में इच्छाशक्ति की कमी की शिकायतें हुई। यह भ्रष्टाचार ही है, जिसके चलते कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ एक अभियान खड़ा किया, जिसके परिणामस्वरूप शनिवार को निर्णायक जीत हुई।
ये एक किंगमेकर की भी कहानी है जिसने राजा को बढ़ावा तो दिया लेकिन अपनी कीमत पर। कर्नाटक चुनाव परिणाम 2023 जनता दल (सेक्युलर) द्वारा खराब प्रदर्शन को प्रकट करता है और उसके पारंपरिक वोट को खोता हुआ भी दर्शाता है। 1999 में जद (एस) के गठन के बाद से राज्य के चुनाव पूर्व प्रधान मंत्री देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी के लिए अस्तित्व का सवाल रहे हैं।
अब तक के अपने अस्तित्व के 24 वर्षों में जेडीएस भी भी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं जुटा सकी और राज्य में दो बड़ी पार्टियों को सत्ता संभालने के लिए एक सहयोगी के रूप में ही रह गई। इस तरह जद (एस) एक बार नहीं बल्कि दो बार जीतने वाली पार्टी का हिस्सा थी। 2006 और 2018 में, जद (एस) के नेताओं ने क्रमशः भाजपा और कांग्रेस को सरकार बनाने में मदद करके विधान सौधा (कर्नाटक विधानसभा) में सत्ता का स्वाद चखा।