Karnataka High Court: 'मां की देखभाल करना बेटों का कर्तव्य', अदालत ने खारिज की याचिका, जानिये क्या था मामला
![Karnataka High Court: 'It is the duty of the sons to take care of the mother', the court rejected the petition, know what was the matter](https://www.bmbreakingnews.com/static/c1e/client/99149/uploaded/2a5d8dc625be2b50db1805faf1338bbe.jpeg?width=963&height=520&resizemode=4)
कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन दो भाइयों की दलीलों को खारिज कर दिया है, जो अपनी बुजुर्ग मां को गुजारा भत्ता देने को तैयार नहीं थे। कोर्ट ने कहा कि वे कानून, धर्म और रीति-रिवाजों से बंधे हैं। इसलिए दोनों भाइयों को अपनी मां को गुजारा भत्ता देना होगा।
बता दें कि मई 2019 में गोपाल और महेश नाम के दोनों भाइयों को मैसूरु के असिस्टेंट कमिश्नर ने उनकी मां वेंकटम्मा को भरण-पोषण के लिए प्रतिमाह 5-5 हजार रुपये देने का आदेश दिया था। इसके बाद दोनों भाइयों ने इस फैसले को डिप्टी कमिश्नर के समक्ष चुनौती दी, जिन्होंने राशि बढ़ाकर 10-10 हजार रुपये कर दी।
हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना - इसके बाद दोनों भाइयों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित ने डिप्टी कमिश्नर के आदेश को बरकरार रखा और दोनों भाइयों की दलीलों को खारिज कर दिया। इतना ही नहीं कोर्ट ने उन पर 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
कानून के खिलाफ हैं याचिकर्ताओं के तर्क - कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर कोई शख्स अपनी पत्नी का भरण-पोषण करता है, तो यह नियम उसकी मां पर लागू होगा। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए तर्क कानून और धर्म के खिलाफ हैं।
याचिकार्ताओं ने दिया ये तर्क - हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों भाइयों ने तर्क दिया था कि उनके पास अपनी मां को भुगतान करने के लिए कमाई के पर्याप्त साधन नहीं हैं। इस पर अदालत ने कहा कि उनका यह तर्क कि उनके पास कमाई के पर्याप्त साधन नहीं हैं, उचित नहीं है।
मां की देखभाल करना बेटों का कर्तव्य - शास्त्रों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "कानून, धर्म और रीति-रिवाज बेटों को अपने माता-पिता और विशेष रूप से बुजुर्ग मां की देखभाल करने के लिए बाध्य करते हैं। मां की देखभाल करना बेटे का कर्तव्य है। कोर्ट ने 'ब्रह्मांड पुराण' का हवाला देते हुए कहा कि बुढ़ापे में माता-पिता की उपेक्षा करना एक जघन्य अपराध है।