National: इन दलों ने छोड़ा NDA का साथ, क्या लोकसभा चुनाव में पड़ सकता है इसका असर ?

NDA: 24 सितंबर को जैसे ही AIADMK ने NDA से अलग होने का ऐलान किया। वैसे ही BJP को तमिलनाडु में जोर का झटका लगा है। बता दें कि भगवा पार्टी के पास दक्षिण भारत में AIADMK के रूप में एक बड़ा सहयोगी था। ऐसा नहीं है कि ये गठबंधन अचानक से टूटा है। इसके टूटने का संकेत अगले साल ही मिल गया था।
आज हम यहां ये चर्चा नहीं करेंगे कि दोनों में गठबंधन क्यों टूटा? आज हम बताएंगे कि कैसे 2019 में हुए आम चुनाव के बाद भाजपा के पुराने साथी एक-एक कर उसका साथ छोड़ते चले गए और जिन्होंने साथ छोड़ा आज वह किस स्थिति में हैं? लेकिन उससे पहले जान लेते है कि किन-किन दलों ने अब तक भगवा ब्रिगेड का साथ छोड़ा है।
उत्तर से दक्षिण तक इन दलों ने छोड़ा BJP का साथ - अगर हम थोड़ा पीछे चले तो पाएंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की शिरोमणि अकाली दल, बिहार की जनता दल (यू) और महाराष्ट्र में शिवसेना भाजपा के साथ थी।
इन सबने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और तीनों पार्टियों को उसके साथ मिला। चुनाव जीतने के बाद अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री की शपथ ली। वहीं, JDU और शिवसेना से किसी ने भी मंत्री पद की शपथ नहीं ली।
टूटा BJP- शिवसेना का गठबंधन - 2019 में लोकसभा के चुनाव के तुरंत बाद महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में भाजपा और शिवसेना गठबंधन ने बहुमत का आंकड़ा पार किया। भाजपा इस चुनाव में बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन शिवसेना ने मुख्यमंत्री की कुर्सी मांगी।
इस पर दोनों दल अलग हो गए और शिवसेना ने भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ लिया और राज्य में कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली। हालांकि ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली और शिवसेना के एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ गठबंधन करके मुख्यमंत्री बन गए। हालांकि अब एनसीपी का एक गुट भी भाजपा के साथ आ गया है।
कृषि कानून पर अलग हुई अकाली दल - शिवसेना के NDA से अलग होने के बाद अकाली दल 26 सितंबर 2020 को तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए भाजपा गठबंधन से अलग हो गई। बता दें अकाली दल का नाम एनडीए की संस्थापक पार्टियों में आता है। केंद्र द्वारा लाए गए कृषी कानून का विरोध करते हुए हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
देशव्यापी आंदोलन के बाद सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिए लेकिन शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के बीच बन नहीं पाई। दोनों ने विधानसभा चुनाव भी अलग-अलग लड़े। इसका फायदा आम आदमी पार्टी को सीधे तौर पर मिला।
आती जाती रही जनता दल (यूनाइटेड) - बता दें कि जेडीयू अटल सरकार के दौरान NDA में थी। हालांकि नीतीश कुमार ने बाद में अपनी राहें अलग कर लीं। उन्होंने बिहार में 2013 में एनडीए के खिलाफ महागठबंधन बनाया। इसके बाद फिर से नीतीश कुमार की वापसी एनडीए में हुई।
पिछला बिहार विधानसभा का चुनाव जेडीयू और भाजपा ने मिलकर लड़ा। भाजपा ने नीतीश कुमार को सीएम बनाने के लिए प्रचार किया। हालांकि भाजपा ने ज्यादा सीटें जीतीं। इसके बाद एक बार फिर नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली।
NDA से अलग हुई AIADMK - 24 सितंबर को जैसे ही AIADMK ने NDA से अलग होने का ऐलान किया। वैसे ही BJP को तमिलनाडु में जोर का झटका लगा है। बता दें कि भगवा पार्टी के पास दक्षिण भारत में AIADMK के रूप में एक बड़ा सहयोगी था।
ऐसा नहीं है कि ये गठबंधन अचानक से टूटा है। इसके टूटने का संकेत अगले साल ही मिल गया था। बता दें 2021 में दोनों ने मिलकर तमिलनाडु में चुनाव लड़ा था। यहां भाजपा को महज चार सीटें मिली थीं और AIADMK को 66 सीटें मिलीं।
हालांकि जीत DMK के गठबंधन को मिली थी। 2019 के आम चुनाव में भाजपा को तमिलनाडु में कोई सीट नहीं मिली थी। बता दें कि यह गठबंधन भी बहुत पुराना नहीं था। जयललिता के निधन के बाद ही भाजपा और AIADMK के एक धड़े में करीबी आई थी।
लोकसभा चुनाव में असर पड़ना तय - अगर हम ध्यान देंगे तो ये बात खुलकर सामने आती है कि पिछले चुनाव के बाद जितनी भी पार्टियों ने भाजपा का साथ छोड़ा है। वो सभी पार्टियां अपने- अपने राज्यों में बड़ी जनाधार वाली पार्टियां है। पिछले चुनाव में दोनों ही पार्टियों को एक दूसरे का साथ मिला था।
इसका उदाहरण बिहार है, जहां 2014 के आम चुनाव में JDU दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई थी। वहीं, 2019 में भाजपा के साथ आने के बाद वह 16 सीट जीतने में कामयाब हो गई थी। वहीं, आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लग सकता है। इस बात की पुष्टि कई सर्वे भी कर चुके हैं।