Varanasi News: क्रिकेट का भारत में बढ़ता प्रभाव और अन्य खेलों की अनदेखी क्यों : सारंग नाथ पाण्डेय

 
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Varanasi News: भारत में क्रिकेट का प्रभाव असाधारण है। यह न केवल एक खेल है बल्कि एक ऐसा जुनून है जो देश की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना का हिस्सा बन चुका है। क्रिकेट के प्रति यह दीवानगी हर आयु, वर्ग और क्षेत्र में समान रूप से दिखाई देती है। 1983 में भारत की पहली विश्व कप जीत और 2007 में टी-20 विश्व कप जीतने के बाद यह जुनून और बढ़ा।

आज आईपीएल जैसी लीग क्रिकेट को वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों पर ले गई है, जिससे खेल से जुड़े खिलाड़ियों, प्रशंसकों और निवेशकों के लिए अपार संभावनाएं उत्पन्न हुई हैं। क्रिकेट के प्रति यह अतिशय आकर्षण अन्य खेलों के लिए चुनौतियां खड़ी करता है।

देश में फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी, बैडमिंटन जैसे खेलों की समृद्ध परंपरा होने के बावजूद, इनकी लोकप्रियता क्रिकेट के सामने फीकी पड़ जाती है। हॉकी, जिसे कभी भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता था, आज पर्याप्त ध्यान और संसाधनों के अभाव में संघर्ष कर रहा है।

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वहीं, कबड्डी जैसे पारंपरिक खेल, जो हमारी जड़ों से जुड़े हैं, आधुनिक युग में पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं। हालांकि प्रो कबड्डी लीग ने इस खेल को कुछ हद तक पुनर्जीवित किया है, परंतु इसे क्रिकेट जैसी व्यापक स्वीकृति अब भी नहीं मिल पाई है।

इस असंतुलन के पीछे कई कारक हैं। सबसे बड़ा कारक मीडिया और प्रायोजकों का झुकाव है। क्रिकेट को टेलीविजन, सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर जिस तरह से प्रचारित किया जाता है, वह अन्य खेलों को प्राप्त नहीं हो पाता। इसके परिणामस्वरूप क्रिकेट खिलाड़ियों को जहां प्रसिद्धि और आर्थिक लाभ मिलते हैं, वहीं अन्य खेलों के खिलाड़ी संघर्ष करते रह जाते हैं।

खेल के मैदान, सुविधाएं और प्रशिक्षण के संसाधन भी क्रिकेट तक ही सीमित रहते हैं। ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में तो अन्य खेलों के लिए बुनियादी ढांचे का अभाव है। इसके अलावा, भारत में क्रिकेट का बढ़ता प्रभाव एक सामाजिक पहलू को भी दर्शाता है। क्रिकेट को एक ऐसा माध्यम माना जाता है, जो सामाजिक वर्ग, धर्म और भाषाई विविधताओं के बावजूद लोगों को जोड़ता है।

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यही कारण है कि इस खेल का बाजार इतना व्यापक है। विज्ञापनदाता और ब्रांड्स क्रिकेट की लोकप्रियता को भुनाने में लगे रहते हैं। बड़े टूर्नामेंट और आईपीएल जैसे आयोजनों में धन की वर्षा होती है, जिससे अन्य खेलों की स्थिति और कमजोर हो जाती है।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में स्थिति बदलने की उम्मीद जगी है। बैडमिंटन में साइना नेहवाल और पीवी सिंधु, बॉक्सिंग में मैरी कॉम और नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ियों ने अपने-अपने खेलों में विश्व स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है।

लेकिन इन व्यक्तिगत उपलब्धियों को सामूहिक समर्थन की आवश्यकता है। सरकार और खेल संघों को क्रिकेट से परे अन्य खेलों को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। स्कूल और कॉलेज स्तर पर विभिन्न खेलों के लिए कार्यक्रम शुरू करने और इन खेलों को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है।

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क्रिकेट का बढ़ता प्रभाव एक सांस्कृतिक उत्सव की तरह है, लेकिन यह संतुलन के साथ होना चाहिए। अन्य खेलों को प्रोत्साहित करना न केवल खेल संस्कृति को समृद्ध करेगा, बल्कि यह देश की युवा पीढ़ी को विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करेगा।

खेल के माध्यम से न केवल शारीरिक और मानसिक विकास होता है, बल्कि यह राष्ट्र को एकजुट करने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण साधन भी बन सकता है। क्रिकेट की सफलता अन्य खेलों के लिए प्रेरणा बने, यही अपेक्षा है।

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