Bollywood: ऐसा क्या है 'आगरा' फ़िल्म में जो आपको झकझोर कर रख देगा?

 
Bollywood: What is it in the film 'Agra' that will leave you shocked?
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बॉलीवुड की लोकप्रिय फ़िल्मों के कारण दुनिया भर में भारतीय सिनेमा की छवि ऐसी बन गई है कि वो रंगारंग नाच-गाने से भरपूर होते हैं।

Bollywood: भारत की फ़िल्मों की एक और पहचान ये भी है कि वो बेहद शालीन और सभ्य होती हैं। क्योंकि ऐतिहासिक रूप से देखें, तो एक ज़माने में भारत की फिल्मों में सेक्स के सीन की बात तो जाने ही दीजिए, किसिंग सीन तक नहीं होते थे। निश्चित रूप से बॉलीवुड के फ़िल्म निर्देशकों को सेक्स सीन को, किरदारों की सेक्स अपील को दिखाने के लिए इशारों और दबे छुपे तरीक़ों से काम चलाना पड़ता था, ताकि उनकी फ़िल्में सेंसर बोर्ड में अटकें नहीं, पास हो जाएं।

Bollywood: What is it in the film 'Agra' that will leave you shocked?

मसलन, आपने अक्सर बेहद लोकप्रिय फिल्मी गानों में सफ़ेद साड़ी पहने हीरोइन को लजाते शर्माते किसी फ़व्वारे के इर्द गिर्द मंडराते देखा होगा। लेकिन, जिसके के ज़हन में भी भारतीय सिनेमा की ये मासूमियत भरी छवि रही होगी, उसे इस साल के कान फिल्म फेस्टिवल के दौरान बहुत हैरानी हुई होगी।

25 मई को कान फिल्म फेस्टिवल में निर्देशक कनु बहल की फिल्म आगरा को डायरेक्टर्स फोर्टनाइट वाले सेक्शन में दिखाया गया था। इस फिल्म में भारत के मर्दों की सेक्स की दबी कुचली आकांक्षाओं को झकझोर देने वाली बेबाक़ी के साथ पेश किया गया है. फिल्म में न्यूड और सेक्स सीन भरे पड़े हैं। आगरा, भारतीय सिनेमा की बंदिशें तोड़ने वाली वैकल्पिक फिल्मों के सिलसिले की ताज़ा कड़ी है, जिसकी शायद ही कोई ख़ास चर्चा हो रही हो।

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जैसा कि कनु बहल ख़ुद कहते हैं, ''भारत में कितनी सारी फिल्में बनती हैं और वहां पर फिल्मों के वैसे ही दो पहलू नज़र आते हैं, जैसे कोई इंसान दो अलग अलग किरदारों में बंटा हुआ हो। एक तरफ़ भारतीय फिल्मों का बॉलीवुड वाला रंगारंग चेहरा है, जो बेहद लोकप्रिय है। जिसके बारे में बहुत से लोग जानते हैं।''

''वहीं दूसरी तरफ़ फिल्मों की एक समानांतर और बिल्कुल अलग ही दुनिया है, जहां काफ़ी दिलचस्प काम हो रहा है। और, ऐसा नहीं है कि ये कोई नया चलन है, जो अभी शुरू हुआ है। या, पिछले पांच या दस सालों से ऐसा हो रहा है। भारत में समानांतर सिनेमा का इतिहास तो दशकों पुराना है।''

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आगरा फिल्म में कॉल सेंटर के एक कर्मचारी गुरु की कहानी दिखाई गई है, जो दबी हुई इच्छाओं और कुंठाओं का मारा हुआ है। वो एक छोटे से घर में अपने मां-बाप और भाई-बहनों के साथ रहता है। गुरु के उस तंग घर में इतनी भी जगह नहीं है कि वो अपना घर बसा सके और लोगों की नज़र और फ़ब्तियों से बचकर अपनी साथी के साथ सेक्स कर सके। इसलिए वो चाहता है कि घर में एक कमरा और बनवाया जाए।

यौन संबंधों से महरूम गुरु बुरी तरह खीझा हुआ इंसान है, जिसे डेटिंग ऐप्स की लत लगी हुई है। वो दिन का ज़्यादातर हिस्सा उन ऐप्स पर ही बिताता है, और एक के बाद एक अपनी हिंसक सेक्सुअल फैंटेसी को जीने का अभिनय करता है। हालांकि, कनु बहल फिल्म में कभी ये बात नहीं साफ़ करते कि ये गुरु की कोरी कल्पनाएं ही हैं, या असली घटनाएं हैं।

गुरु की इस सनक और भरमजाल में हक़ीक़त और फ़साने का जो मेल है, उसमें हमें अमरीकी फिल्म, अमेरिकन साइको के पैट्रिक बेटमैन की झलक नज़र आती है। ये एक साहसिक फिल्म है, जिसके पहले सेक्स सीन का ख़ात्मा एक महिला के विशाल चूहे में तब्दील होने के साथ होता है, और हमें ये एहसास होने लगता है कि गुरु पेचीदा ख़्वाब गढ़ने वाला एक इंसान है।

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वैसे ये सीन तो ऊट-पटांग का लगता है। लेकिन, कनु बहल गुरु की कुछ ज़्यादा हिंसक और गुस्सैल फंतासियां दिखाने में संकोच नहीं करते. इन्हें देखकर सदमा लगता है, और जब निर्देशक, फिल्म देखने वाले को एक भयंकर रूप से बीमार इंसान के ख़तरनाक दिमाग़ के भीतर लेकर जाते हैं, जहां वो औरतों को अपने शिकंजे में कर लेने और अपनी मर्दानगी दिखाने की कल्पना कर रहा होता है, तो उसे बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो जाता है। 

क्या कहते हैं आगरा के डायरेक्टर? -  42 बरस के फिल्म निर्देशक कनु बहल कहते हैं कि, 'ये फिल्म उन छुपे हुए पहलुओं पर रोशनी डालती है, जो हर इंसान की ज़िंदगी में होते हैं। मगर जिनके बारे में कोई बात नहीं करता। ' उत्तर भारत में पले बढ़े कनु कहते हैं, 'एक चढ़ती उम्र के लड़के के तौर पर मैं ख़ुद अपनी सेक्स की इच्छा दबाने के अनुभव से गुज़रा था, और मैं ही क्यों, मैंने बहुत से ऐसे लोगों को देखा है, जो यौन संबंध के मामले में देर से परिपक्व होने की चुनौती से जूझ रहे थे।'

कनु बहल की फिल्म आगरा, कुंठित यौन ख़्वाहिशों की समस्या की पड़ताल करती है, और इशारों में ये कहती है कि भारत में यौन अपराधों की ऊंची दर के पीछे यही वजह है। हालांकि, आगरा फिल्म में भारत में यौन हिंसा की समस्या को व्यापक तौर पर पेश करने की कोशिश नहीं की गई है। 2012 में दिल्ली में एक छात्रा के साथ बस में बलात्कार की बर्बर घटना हुई थी। जिसके बाद भारत में यौन हिंसा की ऊंची दर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था।

इस घटना के बाद भारत की संसद ने सेक्स क्राइम के लिए सज़ा के प्रावधान और सख़्त कर दिए थे। लेकिन, ऐसा लगता है कि इससे अपराध की दरों पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा। बलात्कार की घटनाएं बढ़ी ही हैं, और आज तो इसकी शिकार बनने वाली बहुत सी महिलाएं आगे आकर अपनी शिकायत करने से भी डरती हैं। 

एक व्याकुल इंसान की कहानी के ज़रिए इस स्याह मसले पर नज़र डालते हुए कनु बहल ने एक ऐसी फ़िल्म बनाई है, जो बहुत से रिवाजों को तोड़ती है, भले ही ख़ुद निर्देशक का ऐसा इरादा न रहा हो। कनु बहल कहते हैं कि,''मैंने फिल्म बनाने की शुरुआत किसी लक्ष्मण रेखा को पार करने की नीयत से नहीं की थी। लेकिन, ये विषय ही ऐसा था, जिसने मुझे ऐसा करने को मजबूर कर दिया।''

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भारत में सेक्स संबंधी रीति रिवाज और यौन हिंसा का पूरा मसला, एक ऐसा विषय था जिसका सामना करना कनु बहल के लिए भी आसान नहीं था। उन्होंने कहानी का जो पहला ड्राफ्ट तैयार किया था, उसमें खुलकर सेक्स सीन का ज़िक्र नहीं था। लेकिन, जब कनु बहल फिल्म निर्माताओं के लिए अमरीका के थ्री रिवर्स रेज़ीडेंसी में भाग ले रहे थे, तो बहल से कहा गया कि उन्हें अपने किरदार के दबे कुचले अरमानों, उसके बदसूरत किरदार और कहानी के स्याह पहलू को दर्शकों के सामने उजागर करने के लिए तस्वीरों में पेश करना होगा। 

जिससे दर्शकों को ये समझ में आ सके कि फिल्म के मुख्य किरदार के कुंठित दिमाग़ ने ही शारीरिक संबंध बनाने की उसकी ख़्वाहिशों को वीभत्स बना दिया है। कनु बहल ने बताया, ''जब उन्हें पढ़ाने वाले ने फिल्म का ड्राफ्ट पढ़ा, तो मुझसे पूछा कि मैं ये फ़िल्म क्यों बना रहा हूं? तो, मैंने जवाब दिया कि मैं भारत में जगह की कमी और यौन इच्छा के दमन की समस्या को दिखाना चाहता हूं. तब उन्होंने कहा कि फिर तुम इसे पर्दे पर क्यों नहीं दिखा रहे हो? ''

''अगर तुम वाक़ई लोगों को ये कहानी सुनाना चाहते हो, तो ये काम अधकचरे ढंग से नहीं कर सकते। उसी रात मैंने फ़ैसला किया कि मैं एक ऐसे कमज़ोर इंसान की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाऊंगा, जिसे नहीं पता कि वो अपने विपरीत लिंग वाले इंसान से कैसा व्यवहार करे। मुझे दिखाना पड़ा कि ऐसे लोग इतनी नीचता भरा बर्ताव करते हैं, जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।''