Life Style: कभी लोग कहते थे भंगड़वालियां, गोबर, मिट्टी, प्‍लास्टिक बोतलों से लड़कियों ने बना डाला एयर कंडीशन घर

 
Life Style: Once upon a time people used to say that girls made air condition house with dung, soil, plastic bottles
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औरंगाबाद की दो लड़कियों ने गजब का घर बनाया है। यह सर्दियों में गरम और गर्मियों में ठंडा रहता है। इसे बनाने में गोबर, मिट्टी और 16,000 प्‍लास्टिक की बोतलों का इस्‍तेमाल हुआ है। यह सीमेंट वाले घरों की तुलना में आधी कीमत में बन जाता है। कभी लोगों ने उन्‍हें भंगड़वालियां कहकर चिढ़ाते थे।

Life Style: दो सहेलियों ने गोबर, मिट्टी और प्‍लास्टिक की बोतलों से इको-फ्रेंडली घर बनाया है। भीषण गर्मी में भी यह अपने आप ठंडा बना रहता है। इसमें कूलर, पंखे और एयरकंडीशनर की जरूरत नहीं पड़ती है। उन्‍हें एक स्‍कूल से इस तरह का घर बनाने का आइडिया आया था।

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इस स्‍कूल में प्‍लास्टिक की बोतलों का इस्‍तेमाल बच्‍चों के बैठने की कुर्सियों में किया गया था। इसके बाद उन्‍होंने हॉस्‍टल, कूड़ाघर, ग्रॉसरी शॉप, सड़क जहां से भी हुआ प्‍लास्टिक की बोतलों को बटोरना शुरू कर दिया।

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एक समय लोगों ने उन्‍हें भंगड़ वाली तक कहकर चिढ़ाना शुरू कर दिया था। लेकिन, इन दोनों को पता था कि वे क्‍या कर रही हैं। उन्होंने किसी भी बात को नहीं सुना और अपना काम जारी रखा। सीमेंट से बनने वाले मकानों की तुलना में यह आधी कीमत में बन जाता है।

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इन दोनों सहेलियों का नाम नमिता कपाले और कल्‍याणी भ्राम्‍बे है। ये औरंगाबाद की रहने वाली हैं। इन्‍होंने अलग तरह का घर बनाया है। यह इको-फ्रेंडली है। इसे बनाने में 16,000 प्‍लास्टिक की बोतलें, गोबर और मिट्टी का इस्‍तेमाल हुआ है। पूरा घर बनाने में 12-13 टन प्‍लास्टिक लगी है।

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नमिता और कल्‍याणी को 2021 में इस तरह का घर बनाने की धुन सवार हुई थी। उन्‍होंने गुवाहाटी में एक स्‍कूल देखा था। यह स्‍कूल प्‍लास्टिक की बोतलों से बच्‍चों के बैठने की कुर्सियां बना रहा था।

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इसके बाद दोनों ने सड़कों, कूड़ेवालों, होटलों और ग्रॉसरी शॉप्‍स से प्‍लास्टिक की बोतलों को जुटाना शुरू किया। जब लोगों ने उन्‍हें ऐसा करते देखा तो दोनों को भंगड़ वालियां कहने लगे। लेकिन, जब उनका काम सामने आया तो लोगों के सुर बदल गए। वही लोग नमिता और कल्‍याणी की तारीफ के पुल बांधने लगे।

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नमिता और कल्‍याणी ने जिन प्‍लास्टिक बोतलों को जुटाया था, उन्‍हें प्‍लास्टिक के बैगों में ठूंस दिया गया था। फिर अतिरिक्‍त हवा निकालकर बोतलों की पैकिंग कर दी जाती थी। प्‍लास्टिक बोतलों से बनी ईंट को एक के ऊपर एक लगाया गया। फिर मिट्टी और गोबर से दीवारों को प्‍लास्टर किया गया। छत को बांस और लकड़ी से तैयार किया गया।

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दोनों सहेलियों ने अपने इको-फ्रेंडली घर को 'वावर' नाम दिया है। इसका मतलब होता है खेत या खुली जगह जहां लोग आ जा सकते हैं। नमिता और कल्‍याणी के घर में दो चौकोर कमरे हैं। ये आंशिक तौर पर खुले हुए हैं। एक गोल झोपड़ी है।

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गर्मियों में इस घर में किसी एसी की जरूरत नहीं पड़ती है न सर्दियों में हीटर की। नमिता और कल्‍याणी का दावा है कि सीमेंट की तुलना में मिट्टी, गोबर और प्‍लास्टिक से बने इस घर को बनाने की लागत आधी आती है। नमिता और कल्‍याणी का यह घर दौलताबाद के पास सांबाजी में बना है। दोनों ने अपनी 7 लाख रुपये की सेविंग से इसे बनाया। इसमें परिवार वालों ने भी कुछ मदद की।