महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़े, समाज की सोच में आखिर क्यों नहीं आ रहा बदलाव?

 
Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?
Whatsapp Channel Join Now
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर निश्चित ही महिलाओं पर लगा दोयम दर्जे का लेबल हट रहा है। हिंसा एवं अत्याचार की घटनाओं में भी कमी आ रही है। बड़ी संख्या में छोटे शहरों और गांवों की लड़कियां पढ़-लिखकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

इन दिनों स्त्रियों के घरेलू जीवन में उन पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। विशेषतः कोरोना महामारी के लॉकडाउन के दौरान एवं उसके बाद महिलाओं पर हिंसा, मारपीट एवं प्रताड़ना की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसी ही पीलीभीत की एक घटना ने रोंगटे खड़े कर दिये। खाने में बाल निकलने के बाद पत्नी को पीलीभीत के युवक जहीरुद्दीन ने जिस बेरहमी, बर्बरता एवं क्रूरता से मारा, जमीन पर गिरा दिया, घर में रखी बाल काटने वाली मशीन (ट्रिमर) को पत्नी के सिर पर चला दिया, इन दुभाग्यपूर्ण एवं शर्मसार करने वाली नृशंसता की घटना की जितनी निन्दा की जाये, कम है।

स्त्री को समानता का अधिकार देने और उसके स्त्रीत्व के प्रति आदर भाव रखने के मामले में आज भी पुरुषवादी सोच किस कदर समाज में हावी है, इसकी पीलीभीत की यह ताजा घटना निन्दनीय एवं क्रूरतम निष्पत्ति है। दुभाग्यपूर्ण पहलू यह है कि जब एक स्त्री पर यह अनाचार हो रहा था तो दूसरी स्त्री यानी उसकी सास भी खड़ी थी और उसके बचाव में नहीं आई। जब उक्त युवक को अपने अपराध का अहसास हुआ तो भी वह पश्चाताप करने की बजाय पत्नी को ऐसे ही बंधा छोड़कर फरार हो गया।

Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?

रह-रह कर समाज में घटित हो रही ये महिला अत्याचार, हिंसा, उत्पीड़न की घटनाएं चिन्तित करती एवं इन पर नियंत्रण के लिये कुछ प्रभावी कदमों की जरूरत व्यक्त करती है। यह देखना भी दिलचस्प है कि जहां साल में दो बार लड़कियों को महत्व देने के लिए उसे पूजने के पर्व मनाए जाते हों, वहां लड़कियों को दोयम दर्जे का मानने वाले भी बहुत हैं, महिलाओं के अस्तित्व एवं अस्मिता को नोंचने वाले भी कम नहीं हैं, आये दिन ऐसी घटनाएं देखने और सुनने को मिलती हैं कि किस तरह आज भी महिलाओं के साथ हिंसा एवं अत्याचार किया जाता है।

जबकि आधुनिक होते भारत में महिलाओं ने अपने प्रयास के दम पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं। यह देखकर गर्व होता है लेकिन जब ऐसी घटनाएं होती हैं, जैसी पीलीभीत में हुई, तो यह सोचने को विवश होना पड़ता है कि समाज की वास्तविकता क्या है? महिला समानता आज का सच है या अपवाद? प्रगति के प्रतिमान लिखने वाली महिलाएं हमारे समाज का वास्तविक सच हैं या वह, जो पीलीभीत की पीड़िता के साथ हुआ। इस पर गंभीरता से चिंतन करना होगा।

Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?

महिलाओं के प्रति यह संवेदनहीनता एवं बर्बरता कब तक चलती रहेगी? भारत विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी कई हिस्सों में महिलाओं को लेकर गलत धारणा है कि महिलाएं या बेटियां परिवार पर एक बोझ की तरह हैं। एक विकृत मानसिकता भी कायम है कि वे भोग्य की वस्तु हैं? उन्हें पांव के नीचे रखा जाना चाहिए।

यों यह घटना आए दिन होने वाले जघन्य अपराधों की ही अगली कड़ी है, मगर यह पुरुषवादी सोच और समाज के उस ढांचे को भी सामने करती है, जिसमें महिलाओं की सहज जिंदगी लगातार मुश्किल बनी हुई है, संकटग्रस्त एवं असुरक्षित है। भले ही महिलाओं ने अपनी जंजीरों के खिलाफ बगावत कर दी है, लेकिन देश में ऐसा वर्ग भी है जहां आज भी महिलाएं अत्याचार का शिकार होती हैं। भले एक खास महिला वर्ग ने आर्थिक मोर्चे पर आजादी हासिल की है, लेकिन एक बड़ा महिला वर्ग आज भी पुरुषप्रधान समाज की सोच की शिकार है।

ऐसा माहौल है तभी आजादी के अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र की तमाम महिलाएं ‘मुझे पति और पति के परिवार से बचाओ’ की गुहार लगातीं हुई दिखाई देती हैं। इसलिये कि उन्हें सदियों से चली आ रही मानसिकता, साजिश एवं सजा के द्वारा भीतरी सुरंगों में धकेल दिया जाता है, अत्याचार भोगने को विवश किया जाता है।

Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?

महिलाएं सभी समाजों, सभी देशों और सभी कालों में महत्वपूर्ण भूमिका में रही हैं। चाहे वेदों की बात करें, जो महिलाओं को पूजनीय बताते हैं, या गांधीजी की बात करें जो उन्हें परिवार की धुरी बताते हैं, हर समय महिलायें महत्वपूर्ण रही हैं। वेद कहते हैं कि वह व्यवस्था सबसे उत्तम है, जहां महिलाओं का सम्मान होता है। गांधीजी मानते थे कि अगर पूरे परिवार को और आगे आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाना है, तो केवल उस परिवार की महिलाओं को शिक्षित कर देना चाहिये।

साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत हरियाणा के पानीपत जिले से की थी। इसके बाद भ्रूण हत्या को समाप्त करने व महिलाओं से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर पुरुष मानसिकता में व्यापक परिवर्तन आया है। लेकिन व्यापक परिवर्तन ही नहीं, आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। प्रश्न है कि घर की चार-दीवारी के भीतर महिलाओं पर अत्याचार का सिलसिला कब रुकेगा?

आखिर कब तक महिलाओं की छोटी-छोटी भूलों के लिये पुरुष उनको पीटते रहेंगे? क्यों हर कदम पर पुरुष व्यवस्था द्वारा लगाये गये नियमों के पालन में थोड़ी-सी कोताही उसे अपराधिनी सिद्ध करने का आधार बनती रहेगी। सेवा, श्रम और सेक्स- ये तीन बातें स्त्री के जीवन के आधार स्तंभ मान ली गयी हैं, जो उसे परिवार और पति के लिये समर्पित करने हैं। इनमें तनिक चूक के लिये वह हिंसा की शिकार बना दी जाती है।

Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?

लेकिन इन अत्याचारों को सहते-सहते स़्त्री टूट चुकी है। आज त्याग की जंजीरें और सहने की ताकत की कड़ियां बिखर चुकी हैं। स्त्री का विद्रोही स्वरूप सामने आ रहा है, विवाह का विधान डगमगाने लगा है, समाज के सामने खतरे की घंटी बज रही है। आखिर इसका जिम्मेदार पुरुष ही है, उसके बढ़ते अत्याचार हैं, स्त्री को दोयम दर्जा मानने की मानसिकता है। ऐसी मानसिकता चाहे पीलीभीत में कहर ढाये या अन्यत्र।

असर पूरे महिला समाज पर होता है। सवाल यह है कि औरत को तरह-तरह से घेरने वाली सजायें एवं जुल्म जब गुजरते हैं तो 'ऐसा तो होता ही रहता है’ की मान्यता अब स्त्री को स्वीकार्य नहीं है। जुल्म भले एक महिला को झेलना पड़े लेकिन अनेक महिलाएं उससे जागरूक हो जाती हैं, कमर कस लेती हैं। निश्चय ही यह पुनः एक प्रश्न को जन्म देता है कि क्या महिलायें अभी भी दोयम दर्जे की हैं?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर निश्चित ही महिलाओं पर लगा दोयम दर्जे का लेबल हट रहा है। हिंसा एवं अत्याचार की घटनाओं में भी कमी आ रही है। बड़ी संख्या में छोटे शहरों और गांवों की लड़कियां पढ़-लिखकर देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। वे उन क्षेत्रों में जा रही हैं, जहां उनके जाने की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। वे टैक्सी, बस, ट्रक से लेकर जेट तक चला-उड़ा रही हैं।

Cases of violence against women have increased, why is there no change in the thinking of the society?

सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रही हैं। अपने दम पर व्यवसायी बन रही हैं। होटलों की मालिक हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लाखों रुपये की नौकरी छोड़कर स्टार्टअप शुरू कर रही हैं। वे विदेशों में पढ़कर नौकरी नहीं, अपने गांव का सुधार करना चाहती हैं। अब सिर्फ अध्यापिका, नर्स, बैंकों की नौकरी, डॉक्टर आदि बनना ही लड़कियों के क्षेत्र नहीं रहे, वे अन्य क्षेत्रों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।

इस तरह नारी एवं बालिका शक्ति ने अपना महत्व तो दुनिया को समझाया है, लेकिन नारी एवं बालिका के प्रति हो रहे अपराधों में कमी न आना, घरेलू हिंसा का बढ़ना- भी एक चिन्तनीय प्रश्न है। सरकार ने सख्ती बरती है, लेकिन आम पुरुष की सोच को बदले बिना नारी एवं बालिका सम्मान की बात अधूरी ही रहेगी। इस अधूरी सोच को बदलना नये भारत का संकल्प हो, इसीलिये तो इस देश के सर्वोच्च पद पर द्रौपदी मुर्मू को आसीन किया गया हैं।

वह प्रतिभा पाटिल के बाद देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। अमेरिका आज तक किसी महिला को राष्ट्रपति नहीं बना सका, जबकि भारत में इंदिरा गांधी तो 1966 में ही प्रधानमंत्री बन गई थीं। असल में, यही तो स्त्री शक्ति की असली पूजा है।

अब स्त्री शक्ति के प्रति सम्मान भावना ही नहीं, सह-अस्तित्व एवं सौहार्द की भावना जागे, तभी उनके प्रति हो रहे अपराधों में कमी आ सकेगी। तभी पीलीभीत जैसी बर्बर मानसिकता पर विराम लग सकेगा। 

साभार - लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं