UP Politics: सपा में स्वामी का विरोध करने वाले और नेता भी नपेंगे, अखिलेश ने चला नया दांव

UP Poliotics: समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस पर जब विवादित बयान दिया तो सपा के ही नेताओं ने खुलकर मौर्य का विरोध करना शुरू कर दिया। ऐसे ही विरोध करने वाले नेताओं में शामिल रोली तिवारी और ऋचा सिंह को समाजवादी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
सियासी गलियारों में अब कहा यह जा रहा है कि दो महिला नेताओं को बाहर निकालकर सपा ने उन नेताओं को एक स्पष्ट संदेश भी दिया है, जो स्वामी प्रसाद मौर्य पर रामचरितमानस को लेकर विवादित टिप्पणी करने के बाद विरोध कर रहे थे।
इस मामले में भाजपा ने समाजवादी पार्टी को न सिर्फ जमकर घेरा है, बल्कि राम की आवाज उठाने वालों को दबाने और महिलाओं के विरोधी होने का आरोप लगाया है। वही पार्टी अपने नेताओं को भी सोच-समझ कर किसी भी मामले में टिप्पणी करने के लिए कहा है खासतौर से धार्मिक मामलों में।
बयान के बाद पार्टी दो धड़ों में बंटी
समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जबसे रामचरितमानस पर विवादित बयान दिया है, तब से वह विवादों में घिरे हुए हैं। उनकी पार्टी के नेता भी उनके इस बयान पर दो धड़ों में बंट गए हैं। कुछ नेता तो स्वामी प्रसाद मौर्य का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कई बड़े नेताओं ने तो खुलकर स्वामी प्रसाद मौर्य का विरोध करना शुरू कर दिया है।
इसी विरोध के क्रम में समाजवादी पार्टी की दो महिला नेता रोली तिवारी और ऋचा सिंह ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। सियासी जानकारों का कहना है कि इसी वजह से दोनों नेताओं को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दो महिला नेताओं को बाहर निकालकर पार्टी ने स्पष्ट तौर पर यह संदेश उन नेताओं के लिए दिया है, जो लगातार स्वामी प्रसाद मौर्य के मामले में बयान देकर उनका विरोध कर रहे थे। राजनीतिक विश्लेषक आरएन पाराशर कहते हैं कि ऐसे में पार्टी का विरोध करने वाले नेताओं के लिए निश्चित तौर पर संदेश देने जैसी ही कार्रवाई है।
पार्टी के ब्राहमण नेता कर रहे विरोध
उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वाले जीडी शुक्ला कहते हैं कि रामचरितमानस पर विवादित बयान देने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य का समाजवादी पार्टी के कई नेता खुलकर विरोध कर रहे हैं। इसमें सपा नेता मनोज कुमार पांडेय, पवन पांडेय, संतोष पांडेय, रविदास मेहरोत्रा, जूही सिंह, आईपी सिंह, ऋचा सिंह और रोली तिवारी शामिल रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने जिस लाइन पर विरोध करना शुरू किया है व सियासी रूप से पार्टी को मुफीद लग रहा है। शायद यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों के बाद भी उन्हें न तो रोका, बल्कि खुद शुद्र शब्द पर सियासी तौर पर मुखर हो गए।
राजनीतिक विश्लेषण पाराशर कहते हैं कि समाजवादी पार्टी ने आने वाले लोकसभा चुनावों से पहले वोट बैंक के लिहाज से सब कुछ तय किया है। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के बड़े नेता पिछड़ों की राजनीति के साथ दलितों की राजनीति को आगे रखकर सियासी पिच तैयार कर रहे हैं।
पार्टी के गले की फांस बन सकता है ये मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि समाजवादी पार्टी यही कोशिश कर रही है कि वह भाजपा के पिछड़ों और अतिपिछड़ों के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकें। इसके अलावा जो वोट बैंक बसपा का भाजपा में खाते में चला गया है, वह भी "शूद्र" शब्द की सियासी चाल के माध्यम से समाजवादी पार्टी के हिस्से में आ जाए।
राजनीतिक विश्लेषक का कहना हैं कि समाजवादी पार्टी में जब सब कुछ सही चल रहा होता है, तो अचानक बीच में कुछ ऐसा हो जाता है, जिससे चुनाव के दरमियान उन को भारी नुकसान उठाना पड़ जाता है। रामचरितमानस के विवादित बयान को लेकर शुक्ला कहते हैं कि जिस तरीके से उत्तर प्रदेश के यादव समुदाय में रामचरितमानस को एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ के तौर पर पूजा जाता है।
ऐसे में उनकी पार्टी के नेताओं की ओर से दिए जाने वाले बयान यादवों को भी आहत करते हैं। अब जब उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो समाजवादी पार्टी ने ऐसा मुद्दा छेड़ दिया है जो उनके लिए गले की फांस बन गया है।
वह कहते हैं कि यही वजह है कि समाजवादी पार्टी ने अपने नेताओं को धार्मिक आधार पर कोई भी बयानबाजी करने से सचेत किया है। वह कहते हैं कि दरअसल समाजवादी पार्टी को इस बात का अंदाजा है कि धार्मिक मामलों पर की जाने वाली बयानबाजी बहुत संवेदनशील हो जाती है। जिसका खामियाजा सियासत में लंबे वक्त तक भुगतना पड़ सकता है।
भाजपा को मिला वार करने का मौका
वहीं इस पूरे मामले में भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी हमेशा से राम की विरोधी रही है। उनकी पार्टी के नेताओं ने जब राम और रामचरितमानस पर विवादित बयान देने शुरू किए तो समाजवादी पार्टी के ही नेताओं ने विरोध करना शुरू कर दिया।
वह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने पहले से पार्टी में उपेक्षित रही महिलाओं को ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। त्रिपाठी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी ने ऐसा करके राम मनोहर लोहिया के उन उसूलों को भी खत्म कर दिया, जो कहते थे कि अगर बात नागवार हो, तो जहां हो जैसे हो वहां से आवाज उठाओ। भाजपा नेताओं का कहना है कि समाजवादी पार्टी उन सभी राम भक्तों को निशाने पर ले रही है जो पार्टी के भीतर हैं या पार्टी के बाहर।