Varanasi Crime News: जुआ समाज में फैला जहर है, इसमें हिन्दू-मुस्लिम करना गलत
यूसुफ खान
Varanasi Crime News: वाराणसी। जुआ एक व्यापार है, जिसे फलने फूलने में कुछ अच्छे नागरिक के सहयोग के साथ कुछ पुलिसकर्मी खुलेआम समर्थन करते हैं तो होता है जुआ। ये करोड़ों का व्यापार है लाखों में वसूली होती है और कई पार्ट में। आखिर क्यों होता है जुआ भाग्यश्री, भाग्य लक्ष्मी कई नाम है जो ऊपर के लेवल से चलता है। वहीं मोबाइल से कुछ अलग तरीके से भी इसका खेल होता है अनेक सिस्टम है।
लेकिन सब पुलिस जानती है। पुलिस और पत्रकार को कुछ बताने की जरूरत नहीं है पत्रकार तो आम जनता को खबरों के माध्यम से जागरूक करती है, उसी में पुलिस को भी जानकारी मिल जाती है। अब सवाल ये है कि जब पुलिस ही खेलने और खिलाने वालो के साथ सहयोग में शामिल है, तो फिर कुछ अच्छे लोग भी शामिल हो जाते है चलो पुलिस खाती है तो हम अच्छे लोग है क्यों नहीं कुछ हमारी भी हिस्सेदारी बने और पुलिस सब जानती है, लेकिन मुकदमा और गिरफ्तारी कभी नहीं करती है, क्यों कि खुद भी फंसने का डर होता है।
अभी कुछ ही दिन पहले कोतवाल सिगरा मनोज मिश्रा ने थाने बुलाकर सभी सट्टा संचालकों को सट्टा बंद करने का आदेश दिया था फिर भी खेल जारी था। अगर सिगरा की क्राइम टीम चाहती तो एक दिन भी जुआ नहीं हो सकता है, क्यों कि खेलने वाले एक नहीं अनेक है, और कितने लोगों का घर बर्बाद हो रहा है और हुआ भी है।
एक तो पहले से गरीब है क्षेत्र की जनता उसे और गरीब करने में कुछ लोग सफल है और पुलिस कहीं न कहीं साथ देती है। क्या कोई जिले का ऐसा क्षेत्र है जहा पर लोकल पुलिस नहीं चाहेगी तो कोई जुआ खेल सकता है। किसी की हैसियत नहीं है कि करोड़ों का सिस्टम बनाकर सैकड़ों लोगों के घर के बर्तन बिकवा दे घर में बवाल करवा दे।
लेकिन सहयोग में इतनी ताकत होती है कि जुआ कभी बंद नहीं होते हैं। जैसे किसी भी सिस्टम को बनाने में समय लगता है इसमे भी टाईम लगा। अब ये इतना ज्यादा ताकतवर है कि अब बंद कोई नहीं कर सकता है। क्यों कि करोड़ों कमा लिये और लाखो सहयोगियों में बाट लिये कोई आज नया नहीं है। ये जुआ सिगरा, कैंट, लंका, जैतपुरा, लक्सा, भेलूपुर आदि क्षेत्र में फलफूल रहा है।
अब इसमें हिन्दू मुस्लिम करना कही से भी ठीक नहीं है। अब दूल्हा की शादी में बेगाने की इंट्री सालों से चले आ रहे गतिविधि में शामिल है। सभी को पता है क्या है कि अमा तुम अच्छे आदमी नहीं हो। क्या हुआ क्या दिक्कत है। न्योता नहीं मिला है भूख लगी है अच्छे पकवान हम भी खाएंगे नहीं क्या। ठीक है मिलेगा मिल बाट के खाएंगे हम लोग। इस समय कुछ यही चल रहा है।
कुछ सही पत्रकार हैं वो मौके पर जाकर न्योता मांगते नहीं है न्योता खुद चल के आता है। ऐसा क्यों खुद लिखे पहले यहा ये होता है, वो होता है, जुआ होता है, अब कोई दूसरा लिख दिया तो विरोध क्यों। अब खबर लिखने में कोई ठेका तो है नहीं किसी का, कि हम ही हैं सिर्फ और पुलिस है, बाकी लिखने की भी इजाजत नहीं है।
ठीक है जिसको भूख लगी है वो खाए, लेकिन अगर कोई लेखनी पर कमेंट होगा तो फिर सारे साथी पुलिस कमिश्नर से मिलेंगे। क्यों कि सभी को पता है वहा से आदेश होगा तो जुआ अब नहीं होगा, अगर होगा तो कार्यवाही तय है। थाने से चौकी से कितना सेट करके जुआ खेलवा सकते हैं।
जुआ एक जहर की तरह है जिससे सिर्फ खेल को सिस्टम से चलाने वाला अमीर आदमी करोड़ों में खेलता है। और खेलने वाला कर्जदार और बर्बाद होता है। इसमें लालच ये है कि 100 लगाएंगे और 1000 पाएंगे। लेकिन पाते हैं सिस्टम चलाने वाले और कुछ अच्छे लोग गलत कार्य करने वाले की कोई बिरादरी नहीं होती है वो सभी में है कोई विशेष नहीं।