Varanasi News: "एक प्यार का नगमा है" गाने पर जब कैंसर पीड़ित ने तीन घंटे तक बजाई वायलिन, आंखों से छलके आंसू

Varanasi News: एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है....की धुन वायलिन पर बज रही थी और हर एक शख्स की आंखें आंसूओं से भीगी हुई थीं। कैंसर पीड़ित अरविंद पांडेय जैसे-जैसे मन के भावों को वायलिन के तारों पर छेड़ रहे थे तो जीवन के साथ बहते हुए संगीत की धुन नश्वर जीवन का अहसास करा रही थीं।
शुक्रवार को वाराणसी स्थित महामना मालवीय कैंसर संस्थान का सभागार डॉ. अरविंद पांडेय की सुमधुर वायलिन वादन से गूंज उठा। सुप्रसिद्ध वायलिन वादक प्रो. एन राजम के शिष्य डॉ. अरविंद ने तीन घंटे तक वायलिन पर संगीत का जादू बिखेरा। दर्शक वायलिन की धुनों पर वाह-वाह कर उठे, लेकिन मन में टीस भी थी।
कोलन कैंसर से जूझ रहे अरविंद पांडेय अंतिम दौर में हैं। अब दवाएं भी काम नहीं कर रही हैं। उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह मंच से वायलिन बजाएं और पूरी दुनिया उन्हें सुने। उनको सुनने के लिए कैंसर अस्पताल के चिकित्सक, मरीज और शहर के 150 से ज्यादा लोग मौजूद थे।
अरविंद ने जब वायलिन वादन पूरा किया तो सभागार में मौजूद हर शख्स तालियां बजा रहा था लेकिन उनकी आंखों की कोर नम थी। अरविंद को सुनने के लिए उनके शिष्य अमेरिका, बेंगलुरू और मुंबई से पहुंचे थे।
अरविंद पांडेय ने बताया कि 2017 में कैंसर का पता चला। मुंबई में इलाज के बाद ठीक हो गया था लेकिन कोविड काल में फिर से यह सामने आ गया। समय से इलाज नहीं मिलने के कारण स्थिति बिगड़ गई। 40 कीमोथेरेपी कराने के बाद भी कोई फायदा नहीं है अब तो बस म्यूजिकोथेरेपी ही मेरा सहारा है।
अरविंद ने बताया कि राजकपूर की जोकर फिल्म का गीत 'जाने कहां गए वो दिन' सुनकर मेरे मन में वायलिन बजाने की इच्छा जगी थी। 1992 में बीएचयू से संगीत की डिग्री ली। मैंने अपनी गुरु प्रो. एन राजम के साथ संकटमोचन संगीत समारोह में संगत भी की। प्राइवेट स्कूल में संगीत के टीचर की नौकरी करते हुए बच्चों को वायलिन का प्रशिक्षण दे रहा था।
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