Varanasi Police: POCSO ACT एवं POSH ACT के सम्बन्ध में एडीसिपी महिला अपराध ने गोष्ठी के माध्यम से किया जागरूक

 
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उक्त अवसर पर एडीसिपी महिला अपराध ममता रानी ने दिया महत्वपूर्ण जानकारी 

Varanasi Police: वाराणसी। पुलिस आयुक्त के अनुमोदनोपरान्त ममता रानी चौधरी, अपर पुलिस उपायुक्त महिला अपराध की अध्यक्षता में कमिश्नरेट वाराणसी के यातायात पुलिस लाइन सभागार में गोष्ठी कर महिला एवं बच्चो के विरुद्ध घटित अपराध के सम्बन्ध में लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम-2012 (POCSO ACT) एवं कार्यस्थल पर महिलाओ का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध व प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (POSH ACT) के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी देते हुए जागरूक किया गया।

इस दौरान ममता रानी, अपर पुलिस उपायुक्त महिला अपराध, आशीष प्रकाश वर्मा, ज्येष्ठ अभियोजन अधिकारी वाराणसी व विजयेता सिंह, अभियोजन अधिकारी वाराणसी, आमला जैदी व अंशु माला सिंह कार्यकारी निदेशक आली (AALI) संस्थान लखनऊ उ0प्र0, एवं लगभग 200 की संख्या में अधिकारी/कर्मचारीगण मौजूद रहे।

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उक्त अवसर पर ममता रानी अपर पुलिस उपायुक्त महिला अपराध द्वारा महिलाओ के प्रति हिंसा व अपराध के सम्बन्ध में जानकारी हुए बताया गया कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा जैसे चरित्र हनन, बाहर जाने पर पाबंदी, शिक्षा से वंचित रखना, लैंगिक छेड़छाड़, बाल विवाह, औरतों का मीडिया में गलत चित्रण, भ्रूण हत्या, कार्यस्थल पर लैंगिक हिंसा, विधवा उत्पीड़न, जबरन शादी जैसी समस्याएं आज हमारे समाज में बहुतायत से व्याप्त हैं। इन समस्याओं पर हमें आवाज उठाने के लिए महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा।

भारतीय दण्ड संहिता में वर्णित कानूनों एवं कार्यस्थल पर महिलाओ का लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध व परितोष) अधिनियम, 2013 की जानकारी देते हुए बताया गया कि यदि किसी महिला के स्पष्ट रूप से मना कर दिये जाने के बावजूद बार-बार किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत बातचीत का बढ़ावा देता है या पीछा करता है या फिर सम्पर्क करने का प्रयास करता है, इसे भारतीय दण्ड संहिता में अपराध माना गया है। यदि वह महिला कम्प्लेन्ट करती है तो आईपीसी की धारा 354डी के तहत उस व्यक्ति को दण्डित किया जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले में एवं भवरी देवी मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय में विशाखा दिशा-निर्देश'जारी किया गया, जिसमें शारीरिक संपर्क और यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह के लिये मांग या अनुरोध, अश्लील टिप्पणी करना, अश्लील चित्र दिखाना तथा किसी भी अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक व्यवहार जैसे अवांछित कार्य शामिल हैं और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध व परितोष) अधिनियम, 2013 ("यौन उत्पीड़न अधिनियम") को आधार बनाया।

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इसके अतिरिक्त पॉक्सो एक्ट की जानकारी देते हुए बताया गया कि POCSO ACT बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है। POCSO ACT में त्वरित सुनवाई करने के उद्देश्य से विशेष न्यायालयों की स्थापना की गयी है। पाक्सो एक्ट के अन्तर्गत पीड़ित बालक/बालिकाओं की पहचान का उजागर नही की जा सकती है। यदि किसी बालक या बालिका के साथ कोई अपराध घटित होता है तो 24 घण्टे के अन्दर बाल कल्याण समिति के प्रस्तुत किये जाने का प्रावधान किया गया है।

जांच अधिकारी धारा 164, सीआरपीसी के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करने के उद्देश्य से पीड़िता को किसी भी महानगरीय न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास ले जाने के लिए तत्काल कदम उठाएगा। धारा 164, CRPC के तहत बयान की एक प्रति इस विशेष निर्देश के साथ जांच अधिकारी को तुरंत सौंप दी जानी चाहिए कि धारा 164, सीआरपीसी के तहत दर्ज किये गये इस बयान का, धारा 173, CRPC के तहत चार्जशीट/पुलिस रिपोर्ट दाखिल होने तक किसी भी व्यक्ति के सामने खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।

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वहीं आमला जैदी कार्यकारी निदेशक आली (AALI) संस्थान लखनऊ उ0 प्र0, द्वारा भारत में महिलाओ का अधिकार-एक परिचय देते हुए बताया गया कि लैंगिक उत्पीड़न के परिणामस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 के अधीन समता तथा संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्राण और गरिमा से जीवन व्यतीत करने के किसी महिला के मूल अधिकारों और किसी वृत्ति का व्यवसाय करने या कोई उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के अधिकार का, जिसके अंतर्गत लैंगिक उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार है, उल्लघंन होता है। महिला शक्ति राष्ट्र शक्ति है।

महिला समाज की मार्ग दर्शक के साथ ही प्रेरणा का स्त्रोत भी है। आन्दोलन के दौरान भी हमारी सैकड़ो माताओ बहनो द्वारा बढ़-चढ़ कर आन्दोलन मे सक्रिय भूमिका निभाई है। वही अंशु माला सिंह कार्यकारी निदेशक आली (AALI) संस्थान लखनऊ उ0 प्र0 द्वारा बताया गया कि हमारे समाज की कडवी सच्चाई रही है कि महिलाओ को जीवन मे कदम-कदम पर लैंगिंक भेदभाव का सामना करना पडता है, लेकिन अब समय बदल चुका है किसी भी कीमत पर महिलाओ के साथ कार्यस्थल पर एवं अन्य प्राइवेट जगहों भेदभाव तथा उत्पीड़न नही होना चाहिए। 

उपरोक्त भेदभाव तथा उत्पीड़न को रोकने हेतु आज भारतीय दण्ड संहिता, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 ढेर कानून बन चुके है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो सामान्य रूप से कर्मचारियों की भलाई, उत्पादकता और कैरियर प्रभावित करता है। कार्यस्थल में लैंगिक समानता हासिल करना न केवल सामाजिक न्याय का मामला है, बल्कि नवाचार को अधिकतम करने के लिए भी आवश्यक है।

वहीं विजयेता सिंह, अभियोजन अधिकारी वाराणसी द्वारा पाक्सो एक्ट की जानकारी देते हुए बताया गया कि लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम ( POSCO) 2012 में बच्चों को यौन उत्पीड़न के अपराधों से बचाने और निवारण प्रक्रिया को आसान बनाने तथा पीड़ित के सर्वोत्तम हितों के अनुरूप बनाने के लिए लागू किया गया था। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के सभी लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है।

 POCSO अधिनियम की धारा 3 से 15 के अंतर्गत, बच्चे के लिंग की परवाह किए बिना, बाल यौन शोषण के विभिन्न रूपों को वर्गीकृत किया गया है। इसमें अधिनियम के अन्तर्गत इशारों, भाषण और दृश्यों के माध्यम से कोई भी गैर-शारीरिक यौन व्यवहार, बाल पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित कोई भी कार्य, दवाओं के माध्यम से बच्चों में समय से पहले यौन संवेदनशीलता को सक्षम बनाना, बच्चे के निजी अंगों को छूना या उन्हें अनुचित तरीके से छूना, प्रवेश के माध्यम से यौन शोषण, इनमें से किसी भी कृत्य को करने का प्रयास करना भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। 

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पाक्सो एक्ट के अतंर्गत - अपराध घटित होने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट शीघ्र पंजीकृत कराकर समयबद्ध ढंग से अधिकतम 02 माह के भीतर विवेचना को पूर्ण कराकर आरोप-पत्र मा० न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जायेगा। अपराधों की गुणवत्तापूर्ण विवेचना सुनिश्चित कराते हुए अधिकाधिक वैज्ञानिक साक्ष्यों को संकलित कराया जायेगा।

प्रदर्शों को अधिकतम 02 दिवस के अन्दर परीक्षण हेतु विधि विज्ञान प्रयोगशाला में प्राप्त कराया जायेगा तथा प्रदर्श प्राप्त कराये जाने की तिथि से 15 दिवस के अन्दर आख्या प्राप्त कर निर्धारित अवधि में विवेचना पूर्ण की जायेगी। पाक्सो एक्ट के अन्तर्गत पीड़ित बालक/बालिकाओं की पहचान का उजागर नही की जा सकती है।     

पाक्सो एक्ट के अन्तर्गत पीड़ित बालक/बालिकाओं की पहचान का उजागर नही की जा सकती है। यदि पीड़िता 18 वर्ष की आयु से कम की है तो विवेचक द्वारा नियमानुसार तत्काल जनपद की बाल कल्याण समिति (CWC) को अवगत कराते हुये उनका समुचित निर्देशन प्राप्त किया जायेगा। पाक्सो अधिनियम-2012 एवं पाक्सो नियमावली-2020 के उपबन्धों का पूर्णतया पालन करते हुये ही समुचित कार्यवाही की जायेगी।